दायित्व का विश्लेषण
कार्य स्थितियों में, यह संभव है कि कृत्य विवरण यह दर्शाए कि कार्मिकों का कार्य क्या है। मध्य और उच्च प्रबन्धन स्थितियों में, वांछित और अवांछित कृत्य से सम्बन्धित व्यवहार की सही परिभाषा नहीं मिलती। प्रबन्धक के कार्य के कुछ निश्चित पहलू हैं (उदाहरण- उचित सूचना के अभाव में क्या फैसला लेना, कार्मिकों का सामना होने पर क्या प्रतिक्रिया देना, मैनेजिंग डायरेक्टर से सम्बन्धित व्यक्ति का चयन आदि।) कृत्य विश्लेषण ऐसे समय अपर्याप्त होता है कार्यों का सही मापन करने के लिए। यह विभिन्न समूहों की व्यावहारिक माँगों को पूरा करने में असमर्थ होता है (यूनियन, सहकर्मियों, वरिष्ठों, सामान्य नागरिक आदि) जो कि कार्यकर्त्ता के कार्य को प्रभावित करते हैं। समय के साथ ही कार्मिकों के दायित्वों में बदलाव आया है। कृत्य से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण व्यवहारों की पहचान करना अच्छे प्रदर्शन को संभव बनाता है पर कुछ विशेष परिस्थितियों में यह एक कठिन कार्य प्रतीत होता है।
दायित्व का विश्लेषण इस समस्या का उचित उत्तर है। दायित्व व्यक्ति के बारे में पद हेतु वांछित बर्ताव का निर्धारण है। पद में रहते हुए व्यक्ति को तीन तरह के दायित्व रोजमर्रा की जिंदगी में निभाने पड़ते वांछित दायित्व, सोचा समझा दायित्व एवं वास्तविक दायित्व । वांछित दायित्व वह है जिसकी लोग व्यक्ति से आशा करते हैं। उदाहरण के लिए, एक कॉलेज अध्यापक से उनके दायित्व की आशा की जाती है (प्रिंसिपल, सहयोगी, स्टूडेन्ट द्वारा) कि वह समय पर कॉलेज आये और सही तरीके से पढ़ाए। समझे गये दायित्व वह है जो लोगों की व्यक्तिगत सोच होती. है कि किस तरह वास्तविक दायित्व को पूरा करना चाहिए। एक अध्यापक यह सोच सकता है कि वह दिए गए कोर्स को एक महीने के समय में पूरा करा देगा और कॉलेज में साल भर रहना समय की बर्बादी है। वास्तविक दायित्व वह है जो व्यक्ति को संगठन में निभाना पड़ता है। कॉलेज अध्यापक, अपने विचारों को आकार प्रदान करते हुए, अपनी क्लास हफ्ते में एक बार भी लेने जा सकता है।
अब उन मतभेदों पर नजर करें जो कि सहयोगियों की आशाएं पूरी न होने पर उभरतें हैं। पर्यवेक्षक का कार्य देखें : प्रबन्धन टीम का हिस्सा होने के कारण, उसका अपना रवैया व मूल्य होते हैं (कार्मिकों के कार्य पर अधिक ध्यान, गलतियों पर रोक, दण्ड देना आदि।) कार्मिकों के समूह का सदस्य होने के नाते, उसके अपने मूल्य व आदर्श होते हैं (जैसे कार्मिकों की आवाज ऊपर पहुँचाना, परिवेदना शीघ्र दिलवाना आदि।) इनसे दोनों ही दायित्व बढ़िया ढंग से निभने की आशा की जाती है। ऐसे दायित्वों में मतभेद की स्थिति बनती है क्योंकि दोनों तरफ से कुछ आशाएं रहती हैं। अधिक जटिल मुद्दे जैसे पर्यवेक्षक के दायित्व का दो संगठनों के कृत्य विवरण में असमानता । एक संगठन में पर्यवेक्षक को अधिक आजादी है एवं दूसरे से अधिक सख्ती । यहाँ कृत्य विवरण एक समान हो सकता है, परन्तु पर्यवेक्षकों का वास्तविक दायित्व अलग- अलग है। प्रबन्धन की सोच में बदलाव, औद्योगिक सम्बन्ध, औद्योगिक संस्कृति आदि भी दायित्वों को निभा रहे लोगों पर काफी प्रभाव डालते हैं। इसलिए कृत्य विश्लेषण की प्रक्रिया को दायित्व विश्लेषण के द्वारा आगे बढ़ाना जरूरी है, जिससे कि कृत्य की माँग का सही चित्र सामने आए।
दायित्व विश्लेषण के अन्तर्गत निम्नलिखित चरण हैं-
1.पहला, विभागों के उद्देश्य और उसके कार्यों को चिन्हित किया जाए।
2.दूसरा, दायित्व निभाने वाले कर्मचारी से उसके महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन क्षेत्र पूछे जाएं साथ ही उनके दायित्वों को भी समझा जाए।
3.तीसरा, अन्य दायित्व निर्वाह की (बॉस, अधीनस्थ, साथी आदि) कर्मचारी से क्या उम्मीदें हैं, ये पूछी जाएं।
4.अब कर्मचारी का दायित्व साफ हो गया है और ब्लैक एण्ड व्हाइट (दायित्व विवरण) रूप में अभिव्यक्त हो गया। साथ ही विभिन्न दायित्व निर्वाहकों की राय भी जान ली गई।
दायित्व विश्लेषण, दायित्वों में अधिक स्पष्टता लाते हैं। दायित्व निभाने वालों को पता चलता है कि अपने कृत्य के प्रति दूसरों की राय कृत्य प्रदर्शन बेहतर होता है। का ख्याल रखते हुए कृत्य में क्या करना है। उत्तरदायित्व की स्पष्टता से बेहतर होता है।